सीईपीआरडी की रिपोर्ट में हुई दुर्गंध आने की पुष्टि लेकिन महापौर और निगम अधिकारी अब भी बेखबर

शहर के अनेक क्षेत्रों में कई दिनों से आ रही दुर्गंध से लोग परेशान हैं। शहर में फैली बदबू पर पर्यावरण संरक्षण अनुसंधान एवं विकास केंद्र (सीईपीआरडी) के विशेषज्ञ सदस्यों ने विभिन्न इलाकाें में जाकर अध्ययन किया, जिसमें दुर्गंध की एक नहीं बल्कि कई वजहें सामने आईं। सीईपीआरडी की रिपोर्ट में शहर में फैली बदबू के कारण वहीं बताएं गए हैं जिसे नगर निगम के अधिकारी अब तक नकारते रहे। उदाहरण के लिए रिपोर्ट में जमीन में दबाए कचरे से निकल रही गैसें भी एक कारण बताई गई है। निगम ने देवगुराड़िया ट्रेंचिंग ग्राउंड में कचरे को मिट्टी से दबाया है लेकिन निगम अधिकारी यह मानने को तैयार नहीं कि यह बदबू का एक कारण है। इसी प्रकार खराब सीवरेज सिस्टम, कम्पोस्ट खाद, सार्वजनिक शौचालयों में सफाई का अभाव, नदी, नालों के किनारे बने डंप साइट आदि को दुर्गंध का कारण बताया है जो की नगर निगम के सफाई अभियान पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। 



अध्ययनकर्ताओं के अनुसार शाम को तेजी से महसूस होने वाली दुर्गंध ठंड के साथ और बढ़ेगी। इसके बवजूद नगर निगम महापौर और अधिकारी इस समस्या से बेखबर बने हुए है। निगमायुक्त और महापौर ने तो बदबू आने की बात को सिरे से नकार दिया था। अब सीईपीआरडी की रिपोर्ट में बदबू आने की पुष्टि होने के बाद नगर निगम को समस्या के समाधान की दिशा में काम करना चाहिए। 



अध्ययन दल के समन्वयक डॉ. रमेश मंगल ने बताया कि शहर की घनी बस्तियों जैसे पालदा, नौलखा, अन्नपूर्णा, एमओजी लाइन, मरीमाता, पलासिया, साकेत, एमजी रोड, पाटनीपुरा, देवगुराड़िया समेत 10 से ज्यादा इलाकों में पूर्व इंजीनियर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गुणवंत सिंह, पूर्व प्राचार्य और पर्यावरणविद् ओपी जोशी, निगम के पूर्व इंजीनियर अजीत सिंह नारंग और फार्मेसी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. सुरेश एरन ने अध्ययन कर यह रिपोर्ट तैयार की है। इससे पहले मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ होलकर कॉलेज की टीम भी दुर्गंध के कारणाें का पता लगाने में जुटी थी। दोनों ने अपने-अपने तर्क दिए थे बदबू की समस्या को हल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।